हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भाई दूज

एस.के.एम. न्यूज सर्विस
देहरादून, 23 अक्टूबर। दिवाली के बाद मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व भाई दूज राजधानी देहरादून मे कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया गया। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इसे यमराज से मुक्ति का पर्व माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुना से वचन दिया था कि जो भाई इस दिन बहन के हाथों तिलक कर भोजन करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर पधारे थे और उन्होंने अपनी बहन के प्रेम से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया कि इस दिन जो बहन अपने भाई को प्रेमपूर्वक भोजन करवाकर तिलक लगाएगी, उसके भाई को यमराज का भय नहीं रहेगा। इस प्रकार यम द्वितीया भाई-बहन के प्रेम, सुरक्षा और सौहार्द का प्रतीक है। भाई दूज भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि भाई उन्हें उपहार और आशीर्वाद देते है। आज बहनों ने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए पूजा-अर्चना की और उन्हें टीका लगाया। शुभ मुहूर्त मे बहनों ने भाइयों के माथे पर टीका लगाया, आरती उतारी, और उन्हें मिठाई खिलाई। भाई दूज के साथ ही पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का समापन हो गया। तिलक हिंदू धर्म में शुभता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। तिलक माथे पर लगाया जाता है, जो हमारे शरीर का महत्वपूर्ण स्थान है, इसे आज्ञा चक्र भी कहते हैं। इसे दिव्य ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, जो व्यक्ति की मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है। यम द्वितीया पर तिलक लगाने से भाई को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है और उसकी आयु में वृद्धि होती है। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की भाई दूज भाई-बहन के स्नेह का पर्व है, जिसमें बहनें भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह खास दिन यमराज और उनकी बहन यमुना के बीच के अनमोल रिश्ते को याद करने का अवसर होता है। भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर, कलावा बांधकर और मिठाई खिलाकर उनके सुख-समृद्धि और लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दिन भाई को नारियल भेंट करना भी एक शुभ परंपरा मानी जाती है, जो रिश्तों में प्रेम और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। यह पर्व यमराज और यमुना की पौराणिक कथा पर आधारित है, जिससे इसकी परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। इस पर्व को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे भैया दूज, भाऊ बीज, भात्र द्वितीया और यम द्वितीया। इस दिन बहनें व्रत रखती हैं, अपने भाइयों को तिलक कर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। साथ ही उन्हें मिठाई खिलाकर उपहारों का आदान-प्रदान होता है, जिससे आपसी स्नेह और भी गहरा होता है। भाई दूज का यह त्योहार सिर्फ एक पारिवारिक परंपरा नहीं, बल्कि एक पौराणिक कथा से भी जुड़ा है। मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के प्रेम से जुड़ी इस कथा में बताया गया है कि कैसे यमराज अपनी बहन के आग्रह पर उसके घर भोजन करने गए और प्रसन्न होकर उसे यह वरदान दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के हाथों तिलक करवाएगा, उसे यमलोक का भय नहीं रहेगा। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी पूरे श्रद्धा भाव से निभाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के दो संतानें थीं यमराज और यमुना। यमराज मृत्यु के देवता बने, जबकि यमुना एक पवित्र और प्रिय नदी के रूप में पूजी जाती हैं। बचपन से ही यमुना अपने भाई यमराज से अत्यंत स्नेह करती थीं और हमेशा यह इच्छा रखती थीं कि उनका भाई एक बार उनके घर आए और उनके हाथों से भोजन ग्रहण करे। वे बार-बार यमराज को निमंत्रण देती थीं, लेकिन यमराज अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते कि वे हर बार टाल देते थे। फिर एक दिन, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमराज बिना बताए अचानक यमुना के घर आ पहुँचे। भाई को अपने घर देखकर यमुना अत्यंत हर्षित हुईं। उन्होंने बड़े प्रेम और श्रद्धा से उनका स्वागत किया, तिलक किया, आरती उतारी, और स्वादिष्ट भोजन परोसा। यमुना के स्नेह, सेवा और प्रेम से यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए। यमराज ने यमुना से वरदान मांगने को कहा। तब यमुना ने यह वर मांगा कि हर साल कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन आप मेरे घर पधारें, और इस दिन जो बहन अपने भाई को तिलक करके प्रेमपूर्वक भोजन कराएगी, उसका भाई लंबी उम्र पाएगा और उसे यमलोक का भय नहीं होगा। यमराज ने यह वरदान स्वीकार किया और तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर उनके कल्याण और दीर्घायु की कामना करती हैं। इस कथा के पीछे भाई-बहन के स्नेह, सेवा और प्रेम का गहरा भाव छिपा है, जिसे हर वर्ष भाई दूज के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है।