डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून, 05 अक्टूबर। दिवाली पांच दिन का पर्व है, जिसका हर एक दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। पांच दिवसीय पर्व को दीपोत्सव कहा जाता है। पांच दिनों तक लगभग पूरे देश में उत्साह का माहौल होता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली मनाते हैं। इस दिन लक्ष्मी गणेश जी की पूजा की जाती है। हालांकि इसकी शुरुआत दो दिन पहले धनतेरस से हो जाती है। जबकि समापन दिवाली के दो दिन बाद भाई दूज से होता है। हर दिन की एक खास कथा है और अलग अलग तरह से मनाने की परंपरा। पांच दिन के इस त्योहार के हर दिन का अपना महत्व है। दिवाली, जिसे दीपोत्सव भी कहा जाता है, पांच दिनों का उत्सव है जिसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली), लक्ष्मी पूजा (मुख्य दिवाली), गोवर्धन पूजा और भाई दूज शामिल हैं। इन पांच दिनों में धन-समृद्धि, ज्ञान, प्राकृतिक और पारिवारिक रिश्तों का उत्सव मनाया जाता है।
दीपों और खुशियों का पर्व दिवाली हर साल कार्तिक अमावस्या पर मनाया जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर घर-आंगन से लेकर मंदिरों को दीपों की रोशनी से रौशन करते हुए मां लक्ष्मी व भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि दीपावली हर व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, नई ऊर्जा और खुशियों का संचार करती हैं। यही कारण है कि इसे केवल एक पर्व नहीं बल्कि पांच दिनों तक चलने वाला भव्य उत्सव कहा जाता है। इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है और भाई दूज तक बना रहता है।
धनतेरस (धन त्रयोदशी): यह दिवाली उत्सव का पहला दिन है, जो कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, कुबेर जी और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लोग इस दिन बर्तन और सोने-चांदी जैसी चीजें खरीदते हैं, क्योंकि इसे धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दिवाली के पांच दिनों में सबसे पहले धनतेरस मनाई जाती है। ये कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इसलिए इसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन चिकित्सा और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। भगवान धन्वंतरि ही समुद्र मंथन से अमृत कलश हाथ में लेकर बाहर आए थे। इसलिए धनतेरस को भगवान धन्वंतरि, ऐश्वर्य के स्वामी कुबेर जी की और माता लक्ष्मी का पूजन होता है।
कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 अक्तूबर को दोपहर 12:18 मिनट पर आरंभ होगी।
इसका समापन 19 अक्तूबर को रविवार दोपहर 1:51 मिनट पर होगा। प्रदोष काल को देखते हुए इस बार 18 अक्तूबर 2025 को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा।
दूसरा दिन- नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली): यह दिवाली का दूसरा दिन होता है और इसे छोटी दिवाली के रूप में भी जाना जाता है। यह भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने के दिन का प्रतीक है। इस दिन नरक से मुक्ति के लिए तेल लगाकर स्नान करने और दीपक जलाने की परंपरा है। नरक चतुर्दशी को रूप चौदस के नाम से भी जानते हैं। मान्यता अनुसार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने नरकासुर का वध किया था और लगभग 16 हजार महिलाओं को नरकासुर की कैद से मुक्त किया था। इस दिन को छोटी दिवाली भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी को यमराज जी के नाम का दीपक भी जलाया जाता है। साथ ही इसे रूप चौदस भी कहते हैं। इस साल 19 अक्तूबर 2025 को छोटी दिवाली मनाई जाएगी। इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर यम देव के लिए चार मुखी दीपक जलाया जाता है। इसके अलावा घर की सकारात्मक ऊर्जा के लिए दीप दान करने का भी विधान है।
तीसरा दिन- दीपावली : – यह उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जिसे कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, घर में दीपक जलाए जाते हैं और घरों को सजाया जाता है। इसे ज्ञान का अज्ञानता पर विजय के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है और घरों में रंगोली बनाई जाती है। घरों में पकवान बनाए जाते हैं और धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जाता है।
हर साल कार्तिक अमावस्या पर दिवाली मनाई जाती है। इस वर्ष कार्तिक अमावस्या की तिथि 20 अक्तूबर दोपहर 3 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी। इस तिथि का समापन 21 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 54 मिनट पर है। चूंकि दिवाली पर लक्ष्मी पूजन सूर्यास्त के बाद किया जाता है, इसलिए इस साल दिवाली 20 अक्तूबर 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन शाम 7 बजकर 8 मिनट से रात 8 बजकर 18 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।
चौथा दिन- गोवर्धन पूजा: दिवाली के बाद आने वाले इस चौथे दिन, गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। यह प्रकृति और जानवरों के साथ मनुष्य के संबंधों को दर्शाता है। दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है, जिसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस दिन गोवर्धन यानी गाय-बैल की पूजा की जाती है। इसके अलावा गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा भी लगाई जाती है।
पंचांग के मुताबिक कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 54 मिनट पर होगी। इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 22 अक्तूबर को रात 8 बजकर 16 मिनट पर है। ऐसे में गोवर्धन पूजा का पर्व 22 अक्तूबर को मनाया जाएगा।
पांचवा दिन- भाई दूज: यह पांच दिवसीय उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं और उन्हें टीका लगाती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं। गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाई दूज मनाई जाती है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उनकी आरती उतारती हैं और मुंह मीठा कराती हैं। इस दिन यम और यमुना की कथा भी सुनाई जाती है। रक्षाबंधन की तरह ये त्योहार भी भाई बहन के रिश्ते का प्रतीक है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज मनाया जाता है। इस वर्ष इस तिथि का प्रारंभ 22 अक्तूबर 2025, को रात 08 बजकर 16 मिनट पर होगा। इसका समापन 23 अक्तूबर 2025, को रात 10 बजकर 46 मिनट पर है। ऐसे में 23 अक्तूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। इसके अलावा इस दिन दोपहर 01 बजकर 13 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक तिलक का शुभ मुहूर्त रहने वाला है।