एस.के.एम. न्यूज सर्विस
देहरादून, 02 अक्टूबर। जैन धर्म के अनुसार, रावण एक प्रति-नारायण और आगामी तीर्थंकरों में से एक है, जो शलाका-पुरुष भी है, एक महान विद्वान, राजा और शिव भक्त था, लेकिन सीता का हरण करने के कारण एक महान पापी भी बना। रावण को एक विद्याधर माना जाता है, और जैन कथाओं के अनुसार, उसे राम नहीं, बल्कि लक्ष्मण ने मारा था।
जैन धर्म की जैन रामायण के अनुसार, रावण एक राक्षस नहीं बल्कि एक सम्मानित विद्याधर राजा था, जिसने जैन मंदिरों का निर्माण कराया और भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) का प्रबल अनुयायी था। वह अत्यंत सुंदर, गुणवान और नीतिवान था, लेकिन सीता के प्रति उसका आकर्षण ही उसकी कमजोरी और गलती थी।
जैन मान्यताओं के अनुसार, रावण ब्रह्मांडीय चक्र का हिस्सा था और उसे अंततः लक्ष्मण ने पराजित किया। रावण भावी तीर्थंकर है और उसने भगवान ऋषभदेव की भक्ति में तपस्या करके तीर्थंकर प्रकृति का बध किया था।
जैन धर्म में रावण के प्रमुख गुण और भूमिका :-
विद्याधर राजा :- वह राक्षस नहीं बल्कि तीन खण्डों का स्वामी, अत्यन्त सुन्दर, नीतिवान और नियम का पक्का विद्याधर राजा था।
तीर्थंकर का अनुयायी : – रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी, पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के कट्टर अनुयायी थे और उन्होंने जैन मंदिरों का निर्माण कराया।
प्रतिवासुदेव :- रावण को 20वें जैन तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समय में एक प्रतिवासुदेव के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो ब्रह्मांडीय चक्र का हिस्सा था।
जैन धर्म में रावण की स्थिति :-
प्रति-नारायण :- रावण जैन धर्म में प्रति-नारायण (या प्रतिवासुदेव) के रूप में गिना जाता है, जो छह महान व्यक्तियों (शलाका पुरुष) में से एक हैं।
आगामी तीर्थंकर:- कुछ जैन ग्रंथों के अनुसार, रावण भविष्य के चौबीस तीर्थंकरों में से एक होगा, जो ज्ञान प्राप्त करने और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के बाद मोक्ष प्राप्त करेगा।
विद्याधर:- जैन ग्रंथों में रावण को राक्षस नहीं, बल्कि विद्याधर राजा माना गया है, जिसके पास जादुई शक्तियाँ थीं।