संदीप गोयल/एस.के.एम. न्यूज सर्विस
देहरादून। परम पूज्य संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में आज प्रातः 6.15 बजे से जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक कर शांतिधारा की गयी। इसके पश्चात संगीतमय कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया गया। विधान मे उपस्थित भक्तो ने बड़े भक्ति भाव के साथ 23वे तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की। आज के विधान के पुण्यार्जक देहराखास परिवार रहे।
पूज्य आचार्य श्री के पास बाहर से पधारे गुरुभक्तो का पुष्प वर्षायोग समिति द्वारा स्वागत अभिनन्दन किया गया। भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति आराधना के दिन आज पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि देहरी को लांघ कर ही भगवान मिलते है। हम लोग अकसर पर्याय मूड़ में जीते हैं। हे भगवान आपके भामण्डल में इतनी क्षमता है कि हम अतित के तीन भव, भविष्य के तीन भव, वर्तमान का एक भव इस प्रकार सात भव को जान लेते हो। चेतना की दृष्टि से अचेतन कभी चेतन नहीं होगा। पूजा तीन प्रकार की होती हैं सचित पूजा, अचित्त पूजा, सदेचाचित पूजा। भगवान का भमंडल होता है लेकिन हमारा अभामंडल होता है। विचारों से, शब्दो से और कई बार तो वैज्ञानिक उपकरणो से आपके भीतर के विचार को पता लगा लिया जाता है। आपके भाव अलग नजर आते है जब रसोई बनाते है तो उस समय भाव रहते है कि परिवार स्वस्थ रहे। पिता के साथ अलग भाव होते है पति-पत्नी के साथ अलग भाव रहते है, महाराज के साथ भगवान के साथ पूजा के भाव होते हैं। लेकिन दूसरे को दिखाने के लिए नाटक, फिल्म, रील बनाने लग जाओगे तो आपके विचार अलग नजर आएंगे। इसमे दूसरे को आकर्षित करने के भाव नज़र आएंगे। महाराज के पास आओगे तो स्वयं को बदलने के भाव से, भगवान के पास आओगे तो पूजा के भाव से आओगे।
लेकिन आज हमारे अंदर दूसरे को दिखाने के भाव ज्यादा आते है। भगवान महावीर कहते है भामण्डल के पास आओ और अपने आप को देखो। ये शक्ल सूरत नाच गाना दूसरे को दिखाओगे तो ख्याल करना आप अपने व्याभिचार को दूसरे को प्रदर्शित कर रहे हो।